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अब समय आ गया है कि राष्ट्रवादी सोच के पत्रकार अपनी एक संगठन बनाकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को बचाने के लिए एक जुट होकर फासीवादी सरकार की पोल खोलें और कॉरपोरेट घरानों की पूंजीवादी व्यवस्था का कच्चा चिट्ठा खोलें। ज्यादातर रिपोर्टर्स जो सरकार से प्रश्न करते हैं, गोदी मीडिया की छतरी से बाहर निकलकर पत्रकारिता धर्म निभा रहे हैं। कॉरपोरेट घरानों को अब चाटुकार पत्रकार की जरूरत है जो सरकार की सहमति से उनके लिखे स्क्रिप्ट को ही पढ़े।
रवीश कुमार का एनडीटीवी से त्यागपत्र देना ये दर्शाता है कि अब सरकार और कॉरपोरेट हाउस की मिली भगत है। अब तो वही मीडिया घराना चमकेगा, जो दोनों की चाटुकारिता करेगा और प्रश्न नहीं करेगा।
विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तो सरकार की चाटुकारिता में व्यस्त हैं। ऐसे में यदि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी धराशाई हो जायेगा तो सत्ताधारी बिना नकेल की बैल की तरह प्रजातंत्र की लहराती खेत को रौंदकर रख देंगे। जनता को भी लोकतंत्र का प्रहरी की भूमिका में आना होगा। क्योंकि
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ धराशाई होने के कगार पर है।
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